राम नाम से दूरी, सॉफ्ट हिंदुत्व से किनारा, एमपी में इस सियासी दांव से कांग्रेस को होगा फायदा?

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Harish Divekar
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राम नाम से दूरी, सॉफ्ट हिंदुत्व से किनारा, एमपी में इस सियासी दांव से कांग्रेस को होगा फायदा?

BHOPAL. देश में पहली बार ऐसा हो रहा है कि धर्म की नाव पर चढ़ कर सियासत का दरिया पार किया जा रहा है। इस नाव के दोनों सिरो पर वैसे तो दो अलग-अलग सवार होने थे, लेकिन एक सवार पूरी तरह चढ़ने को तैयार ही नहीं हुआ। नाव के अंदर बैठने की जगह उसने चप्पू पर लटककर ही दरिया पार करने का फैसला लिया, लेकिन ये फैसला फ्लॉप होना ही था। डूबना तय था। सो हुआ भी। सवार टीम सहित डूब गया। अब फिर एक नया दरिया सामने है। जिसे पार करने के लिए अब इस सवार ने नाव ही नहीं चप्पू से भी दूरी बना ली है।

कांग्रेस को किसी एक को चुनना था हिंदुत्व या नॉन हिंदुत्व

अब आप क्या सोच रहे हैं कि धर्म और सियासत से बात शुरू कर मैं किस नाव और चप्पू के बीच उलझ गया हूं। तो इस कहानी को थोड़ा क्लीयर करता हूं। ये कहानी है धर्म की उस नाव की जिस पर बीजेपी बेधड़क सवार है। हिंदुत्व का चोल पहन चुकी है और वोट पोलराइजेशन की फिक्र से कोसों दूर है। दूसरा सवार है कांग्रेस जो अब तक सॉफ्ट हिंदुत्व के नाम पर धर्म की नाव का चप्पू थामे रहा, लेकिन विधानसभा चुनाव की करारी हार के बाद ये क्लियर हो गया कि सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे सियासत का गहरा दरिया पार करना मुश्किल ही नहीं है नामुमकिन भी हो रहा है। कांग्रेस को किसी एक को पूरी तरह चुनना था या तो हिंदुत्व या फिर नॉन हिंदुत्व। ये न सिर्फ अपनी चुनावी फितरत जाहिर करने के लिए जरूरी है। बल्कि, इंडिया गठबंधन की मजबूती के लिए भी जरूरी है। सो कांग्रेस ने नॉन हिंदुत्व को चुना है। वैसे भी हिंदुत्व की रेस में कांग्रेस इतनी पीछे छूट चुकी है कि इस मुकाबले में उसके लिए उतरना ही मूर्खता साबित होगा। तो, भई नॉन हिंदुत्व को अपना बनाते हुए कांग्रेस ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह से ही दूर रहने का फैसला किया है। राहुल गांधी ने बुलंद आवाज में ये कह ही दिया है कि ये धार्मिक कार्यक्रम नहीं बीजेपी और आरएसएस का कार्यक्रम है। अब वो और उनके सहित कांग्रेस के दूसरे नेता किसी और समय पर राम लला के दर्शन करने जाएंगे। उस वक्त कांग्रेस के हिंदुत्व की परिभाषा क्या होगी वो देखना दिलचस्प होगा। फिलहाल ये दूरी कांग्रेस बचे खुचे सियासी भविष्य के लिए बहुत जरूरी है। हिंदी बेल्ट के तीन महत्वपूर्ण राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हार के बाद अब कांग्रेस अपने ही उछाले हुए टर्म सॉफ्ट हिंदुतत्व से भी कन्नी काट रही है। राष्ट्रीय स्तर में कांग्रेस अपना स्टेंड क्लीयर कर चुकी है और मध्यप्रदेश में भी कमलनाथ के सॉफ्ट हिंदुत्व से कांग्रेस ने किनारा कर लिया है। वैसे भी जो नतीजे सामने आए उससे कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व शगूफा ही बनकर रह गया और हाल कुछ ऐसा हो गया कि न खुदा ही मिला न विसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे।

कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व से किनारा कर रही है

सॉफ्ट हिंदुत्व के नाम पर कांग्रेस का खुदा तो खुश नहीं हुआ दूसरी बिरादरी के मतदाता जो सनम बने हुए थे वो भी नाराज हो गए। कांग्रेस ने राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का न्योता ठुकराया, बीजेपी आक्रमण मोड में आ गई। देशभर से बीजेपी नेताओं की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं और कांग्रेस को हिंदू विरोधी साबित करने की होड़ मच गई है। हालांकि, यह भी सच है कि 90 के दशक में कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में कानूनी तरीके या बातचीत के जरिए राम मंदिर निर्माण के लिए हामी भरी थी। इस लिहाज से तो उसे अयोध्या के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाना चाहिए था, लेकिन यह दांव ये साफ कर रहा है कि कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व से किनारा कर रही है।

कर्नाटक-तेलंगाना में जबरदस्त जीत मिली, वजह एंटी सनातन

अपने ही दांव से कांग्रेस ने मात खाई तीन राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों राज्यों में हार का सामना करना पड़ा है, जबकि दक्षिण के राज्यों में पहले कर्नाटक और फिर तेलंगाना में जबरदस्त जीत मिली है। इसकी वजह थी कि दोनों ही राज्यों में एंटी सनातन मसला खूब चर्चा में रहा। अयोध्या को लेकर यह बात निकलकर आई कि एक फैसले से पार्टी को केरल में झटका लग सकता है। उसे चुनाव में नुकसान उठाना पड़ेगा। कर्नाटक, तेलंगाना जैसे राज्यों में सीटें कम हो सकती हैं। यहां कांग्रेस को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। उत्तरी, पश्चिमी और अन्य मध्य राज्यों में पार्टी कोई खास फायदा नहीं होगा, जहां बीजेपी-कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है। यही वजह है कि मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व का राग अलापना बंद कर दिया है।

धीरेंद्र शास्त्री से छिंदवाड़ा में कथा का आयोजन करवाया

इसी कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव की शुरुआत भक्तिभाव के साथ ही की थी। कांग्रेस नेता कमलनाथ मध्य प्रदेश में चुनावी साल में राम मय नजर आए। उन्होंने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत ही धार्मिक आयोजन से की। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी को बुलाया। नर्मदा तट पर पूजा-अर्चना और आरती का कार्यक्रम रखा। उससे पहले सनातन के बड़े चेहरे धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को छिंदवाड़ा बुलाकर कथा का आयोजन करवाया। कुछ दिन पहले ही उनके बेटे और छिंदवाड़ा से सांसद नकुलनाथ ने एक्स पर एक वीडियो शेयर किया और लिखा, 4 करोड़ 31 लाख राम नाम लिखकर छिंदवाड़ा इतिहास रचने जा रहा है। उसी क्रम में कमलनाथ ने सिमरिया हनुमान मंदिर पहुंचकर पत्रक में राम नाम लिखा। कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस नेताओं के घर हनुमान चालीसा के पाठ भी हुए, लेकिन वो भी कांग्रेस के संकटमोचक नहीं बन सके।

राम मंदिर पर स्टैंड क्या लें ये तय करना मुश्किल

इन सारे प्रयोगों के बाद कांग्रेस अब सॉफ्ट हिंदुत्व से किनारा करने लगी है। कांग्रेस की कोशिश ये है कि हिंदी भाषी राज्यों की जमीन भले ही छिन जाए या कुछ कम हो जाए। इंडिया गठबंधन को नुकसान नहीं होना चाहिए. और, गैरी हिंदी भाषी राज्यों में जहां फायदा नजर आ रहा है वहां नुकसान नहीं होना चाहिए. फिलहाल कांग्रेस दक्षिण में बीजेपी की कमजोर पकड़ को और मजबूत नहीं होने देना चाहती। इन प्रदेशों में हिंदुत्व और राम मंदिर का ज्यादा प्रभाव नजर भी नहीं आ रहा है, लेकिन मुश्किल उन कांग्रेस नेताओं की है जो मध्यभारत के प्रदेशों का हिस्सा हैं। अब जीतू पटवारी को ही ले लीजिए। राम मंदिर पर वो क्या स्टैंड ले ये तय करना ही मुश्किल हो रहा है। फिलहाल ये कह कर लाज बचा रहे हैं कि सभी कांग्रेसी राम लला के दर्शन के लिए जरूर जाएंगे। लेकिन फिलहाल कब ये बाद में तय करेंगे। मतलब साफ है, जीतू पटवारी को भी आलाकमान के इशारे का इंतजार है।

दुनिया में श्री राम के नाम से बड़ा कोई नाम नहीं है

यही हाल यूपी, गुजरात और हिमाचल जैसे प्रदेशों के कांग्रेस नेताओं का है। जो अब तक सॉफ्ट हिंदुत्व का बाना पहने हुए थे। अब ये बाना खोल देते हैं तो भी मुश्किल और पहने रखते हैं तो भी मुश्किल। जिसकी वजह से कांग्रेस के सुर हर प्रदेश से कुछ अलग-अलग ही सुनाई दे रहे हैं। जब कांग्रेस हाईकमान ने अयोध्या जाने से इंकार कर दिया तो गुजरात से लेकर यूपी और हिमाचल प्रदेश के नेताओं की प्रतिक्रियाओं ने हर किसी का ध्यान खींचा। गुजरात कांग्रेस के मीडिया विभाग के सह-संयोजक और प्रवक्ता हेमांग रावल कहते हैं कि मुझे गर्व है कि मैं धर्म, कर्म, वचन से हिंदू ब्राह्मण हूं। दुनिया में श्री राम के नाम से बड़ा कोई नाम नहीं है। राम मंदिर निर्माण के गौरवशाली क्षण पर अगर मुझे निमंत्रण मिलता तो मैं जरूर जाता। मैं जल्द ही रामचंद्र के दर्शन करने जाऊंगा। जय श्री राम। गुजरात कांग्रेस के ही पूर्व अध्यक्ष और पोरबंदर से विधायक अर्जुन मोढवाडिया अपनी ही पार्टी को नसीहत देते सुनाई दिए। उन्होंने कहा हैं भगवान श्री राम आराध्य देव हैं। यह देशवासियों की आस्था और विश्वास का विषय है। कांग्रेस को ऐसे राजनीतिक निर्णय लेने से दूर रहना चाहिए था। इसी तरह, कांग्रेस नेता अंबरीश डेर कहते हैं कि देशभर में अनगिनत लोगों की आस्था इस नवनिर्मित मंदिर से वर्षों से जुड़ी हुई है। कांग्रेस के कुछ लोगों को उस खास तरह के बयान से दूरी बनाए रखनी चाहिए और जनभावना का दिल से सम्मान करना चाहिए। यूपी में कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम कहते हैं कि राम मंदिर और भगवान राम सबके हैं। राम मंदिर को बीजेपी, आरएसएस, वीएचपी या बजरंग दल का मान लेना दुर्भाग्यपूर्ण है। मुझे पूरा भरोसा है कि कांग्रेस हिंदू विरोध पार्टी नहीं है। ना राम विरोधी है। कुछ लोग हैं, जिन्होंने इस तरह का फैसला करवाने में भूमिका अदा की है। आज मेरा दिल टूट गया है। इस फैसले से कांग्रेस के करोड़ों कार्यकर्ताओं का दिल टूटा है। उन कार्यकर्ताओं और नेताओं का... जिनकी आस्था भगवान राम में है। खबर तो ये भी है कि आलाकमान की नो के बावजूद यूपी कांग्रेस नेताओं ने ये ठान लिया था कि वो राम मंदिर जाएंगे। मकर संक्रांति के मौके पर ये कोशिश भी की, लेकिन कामयाब नहीं हो सके। यूपी में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने तो नया नारा भी दे दिया- 'सबके राम, चलो अयोध्या धाम'। पोस्टर में उन्होंने सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की तस्वीर लगाई है। अजय राय कहते हैं कि वे सबसे पहले सरयू में स्नान करके विधि विधान से पूजा करेंगे। अन्य नेता भी दर्शन पूजन में शामिल होंगे।

'शंकराचार्य के बहाने किनारा करने में जुट गई कांग्रेस'

गुजरात कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल कहते हैं कि हमारे कुछ सहयोगियों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। हमारे पास आंतरिक लोकतंत्र है, लेकिन ऊपर से कोई अन्य आवाज नहीं है। हाईकमान का निर्णय उचित है। यह स्पष्ट है कि हिंदू धर्म में अगर कोई सबसे बड़ा निर्णय ले सकता है तो जिसका उल्लेख हमारे ग्रंथों और हमारी परंपराओं में है, वो शंकराचार्य जी महाराज हैं। जब शंकराचार्य जी महाराज कह रहे हैं कि मंदिर अभी पूरा नहीं हुआ है, अभी प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होनी चाहिए और बीजेपी चुनाव को देखते हुए सरकारी आयोजन करती है तो यह स्पष्ट है कि इसमें कौन शामिल होगा। मंदिर में दर्शन के लिए किसी आमंत्रण की जरूरत नहीं है। भगवान के घर बिना बुलाए हर कोई जा सकता है। जब मंदिर पूरा बन जाएगा तो आस्था रखने वाला हर कांग्रेसी जाएगा। सिर्फ भव्यता ही भगवान का आशीर्वाद नहीं लाती। रावण के पास बहुत वैभव था, लेकिन उसे आशीर्वाद नहीं मिला। शबरी मां के पास कुछ भी नहीं था, उसके दिल में भावनाएं थीं, इसलिए उसे भगवान का आशीर्वाद मिला। अब जब काम के नाम पर वोट नहीं मिल रहा तो राम के नाम पर रोटी पकाकर वोट बैंक करने निकले हैं। मैं वोटों की राजनीति में अपने भगवान का उपयोग नहीं करता हूं।

अब बात करते हैं मुस्लिम वोटर्स की। एक अनुमान के मुताबिक देश के तैंतीस प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स ने पिछले चुनाव में कांग्रेस का साथ दिया था।

कई तबके हैं जो हार्ड हिंदुत्व के दायरे में नहीं आते

मध्यप्रदेश की बात करें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां पर मुस्लिम आबादी 7 फीसदी है। मुस्लिम वोट 47 विधानसभा सीटों पर प्रभावी हैं, दावा ये भी है कि मुस्लिम मतदाता 22 क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इन 47 सीटों पर मुस्लिम वोटर 5,000 से 15,000 के बीच हैं, जबकि 22 विधानसभा क्षेत्रों में इनकी संख्या 15,000 से 35,000 के बीच है। ये वोटबैंक कांग्रेस का ही होता, लेकिन बीते कुछ समय से इस वोट बैंक में बिखराव दिख रहा है। इसकी वजह है वो पार्टियां जो मुस्लिम वोटरों के पैरोकार के रूप में उतरी थीं। इन्हें मिले कुल वोट प्रतिशत को देखें तो अल्पसंख्यक वोटों का मामूली बिखराव दिखता है। कांग्रेस को कुल 40.40 फीसदी वोट मिले। इसके अलावा कथित रूप से मुस्लिम पैरोकार पार्टियों में AIMIM को 0.09, CPI को 0.03, जेडीयू 0.02, सपा 0.46, बीएसपी 3.40, आम आदमी पार्टी 0.54 वोट मिले। इन आंकड़ों को देखकर समझा जा सकता है कि थोड़ा बहुत ही सही, लेकिन अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस से दूर हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस की ये सोच लाजमी है कि हिंदू वोटर पूरी तरह से बीजेपी में शिफ्ट हो चुका है तो कम से कम अल्पसंख्यक वोटर तो उसके साथ बचा रहे। इसके अलावा और भी कई तबके हैं जो हार्ड हिंदुत्व के दायरे में नहीं आते। जिसमें आदिवासी, दलित जैसे तबके शामिल हैं। जो अब तक कांग्रेस के कोर वोटर भी रहे। जिन्हें बचाना कांग्रेस के लिए जरूरी हो गया है। शायद इसी वजह से कांग्रेस राम मंदिर के भव्य कार्यक्रम से दूरी बना रही है। अब देखना ये है कि ये दाव कांग्रेस के कितने काम आता है।

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